Tuesday, October 13, 2009

लम्हा ए़क चुराना था.......


लम्हा ए़क चुराना था,
ज़िन्दगी को हँसाना था।
देखकर दुनिया की चमक-दमक,
चल दिए उन राहों पर,
जहाँ गम में भी हरदम मुस्कुराना था।
हर पल चाहा नगमे खुशी के लिखे,
जब भी कुछ लिखा,
हर नज़्म में दर्द,
हर लफ्ज़ पुराना था।
ले गया वक्त छिनकर,
वो वक्त सुहाना था,
हर पल में था अपनापन,
वो बचपन ही तो था,
जो हमारा था।
किससे कहे दास्ताँ इस दिल की,
जिसे अपना समझा,
वही शख्स तो था,
जो बेगाना था।
लम्हा ए़क चुराना था,
ज़िन्दगी को हँसाना था.......

4 comments:

  1. ले गया वक्त छिनकर,
    वो वक्त सुहाना था,
    हर पल में था अपनापन,
    वो बचपन ही तो था,



    a deep instinct of sharp expressions

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  2. bahut khoobsurat ehsaas hain aapk.....
    .
    nice blog..kep sharing!!

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