Monday, November 23, 2009

मन करता है कविता लिख दूँ


हवाओं की सरसराहट बादलों की गरजना,

मौसम कुदरत की महफ़िल का है।

फ़िर भी दिल तन्हा है।

यादें सरगोशियों से लहरा रही है

आँचल को रह-रह कर एहसास होता है किसी के छु लेने का

मन करता है कविता लिख दूँ

पर अल्फाज़ की डायरी से हर पन्ना

ये मस्त पुरवाईयां उड़ा देती है।

अश्कों के समंदर में वर्षा की ए़क बूंद,

सूरज की छोटी सी किरण अपने में समेकर,

यूँ गिरी कि निगाहों ने इन्द्रधनुषी रंग बिखेरते सपने को

अपने ज़ेहन में पनाह दे दी।

हर स्याह रात रोशन सी लगती है,

जब किसी के ख्यालों की रेशमी तस्वीरें

आंखों में मुस्कुराती है और तमन्ना मचलने लगती है

उन प्यारी सी निगाहों की गहराई में डूबने को.......

ए़क पल ऑंखें मूंद कर क्या बैठी,

यादों ने बेचैन कर दिया....

निगाहें फ़िर नम हो गई

और सावन की बूंदों ने मुझे भिगो दिया...



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