
गुज़रे हुए लम्हों को लौटने आजा,
रोती हुई आँखों को हँसाने आजा..........
वो मंज़र, वो घर, वो छत की जाली,
दादी लाइ थी दो चांदी की बाली,
वो चिडिया, वो कोयल,
वो पीपल संग नीम की डाली,
भाती थी हमें पडोसन की गाली,
खाते थे फटकर पाते दुलार,
फ़िर हमको आया "बचपन" का बुखार.....
ऐ वक्त उन यादों को लौटने आजा,
गुज़रे लम्हों की कहानी सुनाजा......
wowwww bachpan ki yaadein sach mein bahut suhaani lagti hai ... kash woh waqt fir aata kabhi
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