
ज़िन्दगी को चाह था,
ज़िन्दगी को माँगा था।
जिससे किया बेइन्तेहाँ प्यार,
वो अपना नही पराया था।
कुछ बिसराए से लम्हे जब
यादों के घर में आए।
शामिल उसमे हर पल,
दर्द का स्पर्श अंजना था।
अब ना है आहट किसी के आने की
ना है चाहत ज़िन्दगी को पाने की
ले गया छिनकर हर 'जुस्तजू'
वो गुज़रा हुआ कल जो हमारा था।
ज़िन्दगी को माँगा था।
जिससे किया बेइन्तेहाँ प्यार,
वो अपना नही पराया था।
कुछ बिसराए से लम्हे जब
यादों के घर में आए।
शामिल उसमे हर पल,
दर्द का स्पर्श अंजना था।
अब ना है आहट किसी के आने की
ना है चाहत ज़िन्दगी को पाने की
ले गया छिनकर हर 'जुस्तजू'
वो गुज़रा हुआ कल जो हमारा था।