Monday, December 7, 2009

●๋•शायद ज़िन्दगी ए़क प्रश्न चिन्ह है ●๋•

अकेला जीता है इन्सान।
ख्वाहिशों की राह पर चलता है
इस उम्मीद पर कि कर लेगा हर तमन्ना वो पुरी,
उसे हासिल होगी मंज़िल वही जो वो चाहता है।
पर ज़िन्दगी कुछ और ही कहानी गढ़ती है,
जो कि भ्रमित उपन्यास का रूप लेती है।
जहाँ वह जिसे अपना समझता है
वो बेगाना होता है
और जिससे बेगानों सा पेश आता है
वह उसे अपनाता है
हर कदम पर ख़ुद से, अपनों
से, समझोता करता है।
गर अपनी खुशी के लिए जीता है,
तो दुनिया के ताने उसे तिल-तिल मारते है।
गर दूसरों कि खुशी के लिए जीता है,
तो उसका अपना मन पल-पल उसे रुलाता, सताता है।
जब उसे राह चुनना होती है,
हर तरफ़ अँधेरा होता है।
जब फैसले कि सीढ़ी चढ़ जाता है।
तब हर कोई सलाह देता है :-
"एसा किया होता तो ठीक होता "
आखिर कहाँ थे सब जब जूझ रहा था,
वो दो राहे पर अकेला।
आस लगाए बैठा है कि कब समझ पाएगा
ज़िन्दगी को।
रोती है निगाहें, कैसी है हवाएँ।
कैसे मिलेगी मंजिलें।
हर जगह प्रश्न चिन्ह है
हाँ
शायद ज़िन्दगी ए़क प्रश्न चिन्ह है।

6 comments:

  1. इससे पहले कि हवा शोर मचाने लग जाए.
    मेरे अल्लाह मेरी खाक ठिकाने लग जाए..
    साल भर ईद का रस्ता नहीं देखा जाता,
    वो गले हमसे किसी और बहाने लग जाए..

    अच्छी सोच है, अच्छा लिखा है.
    किसी पैटर्न पर चलने से बेहतर है कि हम अपनी तरह चलें.
    you are going in right way. keep it up.
    शुभकामनाएं!

    Vikas Gupta
    vforvictory09@gmail.com
    Mob. 09584233595

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  2. kafi accha or sachai ko utara hai lekhni se .. sunder rain..

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  3. u jo likhti ho na uska jwab nahi m fan u ka

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  4. This comment has been removed by the author.

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